छंटनी की सुनामी

छंटनी की सुनामी हमारे पड़ोस में रहने वाले नंबरदार के कुत्ते जैसी है, जो चुपके से राहगीर की टांग को पीछे से आकर पकड़ लेता है, जिसके बाद राहगीर की एक नहीं चलती, बस फिर इलाज के लिए टीके पर टीके लगवाने पड़ते हैं. एक डेढ़ सौ साल पुरानी बैंक लेहमन ब्रदर से शुरू ही छंटनी की सुनामी, अब तक दुनिया भर के लाखों लोगों को आपना शिकार बना चुकी है एवं करोड़ों लोग घर से दुआ करते हुए काम पर निकलते हैं, हे भगवान! उनको छंटनी की सुनामी से बचाकर रखना, क्योंकि नौकरी के अलावा उनके पास अन्य कमाई का कोई साधन नहीं.छंटनी वो सुनामी है जो अब तक करोड़ों लोगों के सपनों को रौंद चुकी है और लगातार अपना कहर बरपा रही है. कुछ दिन पहले मैं एक बड़ी कंपनी में काम करने वाले अपने एक दोस्त से मिला था, जो काम पर महीने में से केवल दस बारह दिन ही दिखाई पड़ता था, इसलिए मैंने व्यंग कसते हुए कहा कि क्या बात है, जनाब आपकी तो ऐश है, आपकी कंपनी बड़ी दियालु है, जो आपको इतने दिन की छुट्टी प्रदान कर देती है. तो उसने कहा कि उसके परिवार में कुछ ऐसे घटनाक्रम लगातार हो रहे थे, जिसके कारण उसको बार बार घर जाना पड़ रहा था. फिर उसने बड़े जोश और उल्लास के साथ कहा, लेकिन यार अब ऐसा नहीं, मैं लगातार अपने काम पर आ रहा हूं पिछले कई दिनों से. मैंने कहा दोस्त काम से बेइमानी मत करना नहीं तो मुश्किल में कभी न कभी आ जाओगे. उसने अपने बॉस की खूब प्रशंसा की क्योंकि उसने कई दफा उसकी जाती जाती जॉब बचाई. मैंने कहा अच्छी बात है, अगर तुमको ऐसा बॉस मिला है, लेकिन मुझको परसों उसके बारे में एक और एवं बुरी ख़बर मिली कि उसकी कंपनी में छंटनी का दौर शुरू हो गया, जिसके कारण उसको नौकरी से निकाल दिया गया. ये बात सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ, शायद आपको भी उससे हमदर्दी हो, वो घर में बड़ा है, उस पर सब जिम्मेदारियां हैं क्योंकि उसके पिता की कुछ महीने पहले मौत हुई है, और वो अपने पूरे परिवार के साथ अपना राज्य, घर बार छोड़ अपनी जॉब स्थल पर आ गया. मगर उसके परिवार को उस जगह आए पंद्रह दिन भी नहीं हुए कि कंपनी ने उसको बाहर निकाल दिया, इसके कारण अब वो उस मोड़ है, जहां से उसको घर वापसी परिवार समेत करना किसी भयानक सपने से कम नहीं होगी. ऐसे ही कुछ महीने पहले मैं पंजाब गया था, मैं जब भी पंजाब जाता हूं तो अपने दोस्तों और जान पहचान वालों से मिलकर आता हूं, ज्यादातर लोग मीडिया लाइन में हैं, इस बार गया था तो पता चला कि अमर उजाला अख़बार में सिर्फ दो व्यक्ति काम कर रहे हैं, जिसमें एक रिर्पोटर मेरा दोस्त था, और दूसरा वो शख्स जिसने मुझे जिन्दगी के असली मायने बताए. उस दौरान मेरे जान पहचान वालों ने कहा कि तुम पंजाब आकर कोई न्यूज पेपर क्यों नहीं ज्वाइन कर लेते और अमर उजाला तो खाली ही पड़ा है. लेकिन मेरे दिल ने कहा, अब जहां है, वहां ठीक हैं. जब वक्त पड़ेगा देख लेंगे. पंजाब से मैं अपने काम पर लौट आया, कुछ दिन बाद मैंने अपने दोस्त को ऐसे ही हाल चाल पूछने के लिए फोन किया तो पता चला कि अमर उजाला बंद हो गया. जिससे दोस्त की नौकरी तो चली गई जबकि ब्यूरो चीफ की बदली अन्य एवं दूर जगह कर दी गई. ऐसे पंजाब में मेरे कई जान पहचान वाले पत्रकार काम से हाथ थो बैठे, जिनके बारे में सुनकर मन दुखी हो जाता है.ऐसा ही एक और किस्सा, कुछ दिन पहले मेरे पड़ोसी के पास उसके घर से फोन आया कि बेटे तुम घर कब आओगे, तुम्हारे लिए हम लड़की ढूंढ रहे हैं, तो उसका जवाब था, मां तुम फिलहाल लड़की ढूंढ़ने की बजाय मेरी नौकरी की सलामती के लिए दुआ करो. उसने युवक ने ये शब्द इस लिए कहे थे, क्योंकि उसकी कंपनी में भी छंटनी की सुनामी आ चुकी थी, कई लोगों को दफ्तर से चलता कर दिया गया. ऐसे में लाजमी है कि उसको भी डर लग रहा था कि कहीं उसकी भी गर्दन न उड़ जाए. सही कहा था उसने, आपको याद हो जब एक हवाई कंपनी से लोगों की छंटनी हुई थी तो एक लड़के की एक दिन पहले हुई सगाई टूट गई थी. सबसे ज्यादा छंटनी का डर उन लोगों को रह रहकर सता रहा है, जिन्होंने लोन पर गाड़ी, बंगला एवं अन्य वस्तुएं खरीदीं, जिसकी किश्त उनकी हर महीने आने वाली पगार से भरी जानी है. ऐसे में अगर नौकरी छीन गई तो किश्त का रुकना लाज़मी है, किश्त रुकी तो समझो उनका बंगला, उनकी गाड़ी उनकी नहीं रहेगी. इतना ही नहीं जब से छंटनी की सुनामी शुरू हुई है, दर्द निवारक गोलियों की बिक्री बढ़ चुकी है, बड़े बड़े पदों पर तैनात लोग तो छंटनी से इतने परेशान हैं कि कि एक दिन में दो दो दर्दनिवारक गोलियां खा रहे हैं. ऐसे समय में सबको ध्यान और धीरज से काम लेना होगा. लोगों के सपने चूर होने से मैनेजमेंट गुरू बचा सकते हैं. छंटनी की सुनामी का दर्द तो वही जान सकता है, जो उसका शिकार हुआ है, क्योंकि छंटनी की सुनामी से होने वाली तबाही का मंजर अन्य लोग नहीं देख सकते, जैसे दिल टूटने की पीड़ा एक आशिक ही जान सकता है.

टिप्पणियाँ

  1. बेनामी12/28/2008 1:05 pm

    सही कहा हैप्पी आपने.कई नवयुवक अपनी आखों में हसीन सपने लिए और कुछ वचनों से बंधे महानगरों की तरफ अन्धाधुन्ध दौड़ तो लगा देते हैं जबकि उन्हें घर वाले बुला रहे होते हैं, ऐसे में उनका जाना और भी मुशकिल हो जाता है. ये मन्दी का दौर एक किस्म का क्सबों और शहरों से पलायन करने वाले युवाओं के लिए सबक है कि यदि महानगर में आप प्राईवेट कंपनी में नौकरी करते हैं तो आगामी दिनों में भगवान ना करे कहीं मन्दी आ जाए तो आप कभी भी कहीं भी उस कंपनी से बर्खास्त किए जा सकते हो.इसलिए अपने भविष्य के प्ररि सचेत रहते हुए उन्हें अपने बुज़ुर्गों के मार्गदर्शन में ही रहना चाहिए.

    yashpal jatoi

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  2. जानकारी से बहुत कष्‍ट हुआ पर आपने सही कहा है कि इस कष्‍ट को वहीं जान सकता है , जिसे इस कष्‍ट को झेलना पडेगा।

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