अब बाट जोहने का वक्त नहीं...

दिक्कत यही है कि आप राजनीति का दामन भले ही छोड़ दें, राजनीति आपका दामन नहीं छोड़ती. या तो आप राजनीति को चलाएंगे या फिर राजनीति आपको अपनी मर्जी से घुमाएगी. राजनीति की दलदल में उतरे बिना इस परनाले की धुलाई सफाई का कोई जरिया नहीं है. इस सफाई के लिए कृष्ण या किसी गांधी की बाट जोहने से काम नहीं चलेगा. यह काम हम सबको ही करना पड़ेगा. उक्त लाईनें एक प्रसिद्ध लेखक चुनाव विश्लेषक और सामयिक वार्ता के संपादक योगेंद्र यादव के द्वारा लिखे एवं दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुए वोट देना लोकतंत्रिक धर्म है आलेख की हैं. इन चांद लाइनों में लेखक ने राजनीति को गंदी कहकर मतदान नहीं करने वाले लोगों को एक मार्ग दिखाने की कोशिश की है. ये एक ऐसा सच है, जिससे ज्यादातर लोग मुंह फेर कर खड़े हैं, जिसके कारण देश में बदलाव नहीं आ रहा, देश की राजनीति देश को दिन प्रतिदिन खोखला किए जा रही है. देश को खोखला बना रही इस गंदी राजनीति को खत्म करने के लिए युवाओं को सोचना होगा, न कि राजनीति को गंदा कहकर इसको नजरंदाज करना. अगर देश में बदलाव चाहिए, अगर देश को तरक्की के मार्ग पर लेकर जाना है तो युवाओं को अपनी सोई हुई जमीर और सोच को जगाना होगा. मंजिल की तरफ निकलने के लिए सूर्य के उदय होने का इंतजार नहीं करना चाहिए, बल्कि अंधेरे में निकलकर सूर्यादय होने से पहले मंजिल को फतेह करना चाहिए. कब तक भीड़ में शामिल होकर किसी एक के आगे बढ़ने का इंतजार करोगे, कब तक भीड़ से अलग एकांत में बैठकर देश के बुरे सिस्टम को कोसते हुए अपना खून जलाओगे. योगेंद्र जी ने सही लिखा है कि अब देश के लोगों को कृष्ण और गांधी जी की बाट जोहने की बजाय खुद निकलना होगा, क्योंकि इस इंतजार ने देश को खोखला बना दिया. भगवान कृष्ण जी ने अपने समय में समाज को बुरी से बचाया और गांधी जी ने अपने वक्त में, अब हमारा वक्त है, अब इस समाज को बचाना हमारा धर्म है, हम बचपन से श्री कृष्ण, गांधी और भगत सिंह की कहानियां सुनते आ रहे हैं, लेकिन फिर भी हम आगे बढ़कर बुराई से लड़ने का फैसला नहीं कर पाते, क्योंकि देश के सिस्टम ने हमको नेताओं कोई तरह सिर्फ भाषण देने लायक बनाया, जिनकी करनी और कथनी में जमीं आसमां का अंतर होता है. आज समस्या राजनीति नहीं बल्कि हमारे समाज में फैले वैचारिक व्यक्ति हैं, जो बस एकांत में बैठकर सोचते हैं, भीड़ बैठकर लम्बी लम्बी हांकते हैं, लेकिन आगे बढ़कर करने से कतराते हैं. एक नवोदित समाज बनाने का देशहितैषियों को संकल्प लेना होगा. अमेरिका में तो होगा परिवर्तन, गोरे की जगह एक काला आ गया, उम्मीद है कि वहां का भविष्य उज्जवल है. लेकिन वो परिवर्तन हिंदुस्तान में कब आएगा ? कब सफेद लिबास पहनकर घूमने वाले काले विचारों और काले दिल के लोगों को हिंदुस्तान से खदेड़ेंगे ? फिर देरी कैसी, चलो मिलकर एक कदम उठाएं, भारत के हर नागरिक को कुम्भकर्णी नींद से जगाएं, वो चांद नेताओं दिए गए लोभवन में फंसकर खुद का और हमारा भविष्य बिगाड़ रहा है. ऐसा हक किसी के पास नहीं, उसको समझाएं कि तुम्हारा वोट तुम्हारे नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्तान के भविष्य को तय करता है, हम वोट नहीं, तो चुनाव रद्द नहीं होते, लेकिन हमारे आस पास के दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया वोट हमारा भविष्य लिखता है, इस लिए हमको भी वोट डालना चाहिए और दूसरे को भी सही जगह वोट डालने के लिए समझाना चाहिए. अगर हम को गांधी जिन्दा करना है तो उसके विचारों को करो, जो हिन्दुस्तानियों ने बहुत पहले मार दिए, अहिंसा के पुजारी के देश में हिंसा है, क्या वो महात्मा को मार देने से कम है, हम उसकी प्रतिमा पर तो फूल साल में दो बार चढ़ाते हैं, लेकिन उसके विचारों का कत्लेआम तो हम हर रोज करते हैं.

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