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ऐश्वर्या के आगे चुनौती

जब पिछले दिनों अमिताभ बच्चन अस्पताल में दाखिल हुए तो ना जाने कितने लोगों ने उनके स्वास्थ्य होने की दुआ की होगी, इन दुआ करने वालों में कुछ ऐसे लोग भी थे, जो खुद शायद पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे, लेकिन फिर भी उन्होंने बॉलीवुड के इस महानायक की सलामती के लिए दुआ की. वहीं अमिताभ बच्चन को स्वास्थ्य करने के लिए घरवालों ने पैसे भी पानी की भांति बहाए होंगे, इस में कोई दो राय नहीं. अमिताभ का तंदरुस्त होकर घर आना एक खुशी का लम्हा है, घरवालों और प्रशंसकों के लिए. लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि अब अमिताभ साठ के पार पहुंच चुके हैं, इस पड़ाव के बाद आदमी सोचता है कि उसके बच्चे खुश रहें और उसके घर में उसके पोते पोतियां खेलें. इसमें कोई शक नहीं होगा कि अब अमिताभ का भी ये सपना होगा, अमिताभ का ही क्यों, जया बच्चन का भी तो वो घर है, क्या होगा वो टेलीविजन पर ऐश, अभि और अमित जी की तरह हर रोज दिखाई नहीं देती, किंतु हैं तो बिग बी की पत्नी, वे भी इस सपने से अछूती न होंगी. आज अमिताभ के पास दौलत है, शोहरत है, लेकिन जब उसके मन में उक्त ख्याल उमड़ता होगा, कहीं न कहीं वो खुद को बेबस लाचार पाते होंगे, क्योंकि इसको पूर

बनते बनते बिगड़ी किस्मत

गज्जन सिआं वो देख बस आ रही है, बस नहीं निहाले, वो तो रूह की खुराक है. पास बैठा करतारा बोलिया. ऐसा क्या है बस में, बूढ़ी उम्र में भी आंखें गर्म करने से बाज नहीं आते, ओ नहीं करतारिया, उस बस में गांव के लिए एकलौता समाचार पत्र आता है, जिसको सारा दिन गांव के पढ़े लिखे लोग पढ़कर देश के हालात को जानते हैं, अच्छा अच्छा, ओ गज्जन सिआं माफ करी, ऐसे ही गलत मलत बोल गया था, नहीं नहीं इसमें तेरा कोई कसूर नहीं, टीवी वालों ने बुजुर्गों का अक्स ही ऐसा बना दिया है. गुफ्तगू चल ही रही थी कि बस पास आई और ले लो बुजुर्ग रूह की खुराक ड्राईवर ने बोलते हुए अख्बार बुजुर्गों की तरफ फेंका. गज्जन सिआं ने अख्बार की परतें खोलते हुए कहा, आज तो पहले पन्ने पर किसी नैनो की खबर लगी है, जल्दी पढ़ो गज्जन सिआं, कोई आँखों का मुफ्त कैंप लगा होगा आस पास में कहीं, समीप बैठा करतारा बोलिया..चुटकी लेते हुए गज्जन सिआं ने कहा नहीं ओ मेरे बाप, ये ख़बर आंखों से संबंधित नहीं बल्कि टाटा ग्रुप द्वारा बनाई जा रही नैनो कार के बारे में है, करतारा नजर झुकाते हुए बोला, चल आप ही बताएं खबर में क्या लिखा है, गज्जन सिआं बोला कि अख्बार में लिखा है कि नैन

सिनेमे को समझो, केवल देखो मत

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इस साल भी बहुत सारी फिल्में रिलीज हुई, हर साल की तरह. लेकिन साल की फिल्मों में एक बात आम देखने को मिली, वो थी आम आदमी की ताकत, जिसके पीछे था तेज दिमाग, जिसके बल पर आम आदमी भी किसी बड़ी ताकत को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है. इस साल रिलीज हुई एकता कपूर की फिल्म 'सी कंपनी' ने बेशक बॉक्स आफिस पर सफलता नहीं अर्जितकी, लेकिन फिल्म का थीम बहुत बढ़िया था, घर में होने वाली अनदेखी से तंग आकर कुछ लोग मजाक मजाक में 'सी कंपनी' बना बैठते हैं, 'सी कंपनी' की दहश्त शहर में इस कदर फैलती है कि बड़े बड़े गुंडे और सरकारें भी उनके सामने घुटने टेकने लगती हैं, वो लोग बस फोन पर ही धमकी देते हैं, सब काम हो जाते हैं, वो लोग आम जनता के हित में काम करते हैं. फिल्म कहती है कि अगर बुरे काम के लिए 'डी कंपनी' का फोन आ सकता है तो अच्छे काम करवाने के लिए 'सी कंपनी' क्यों नहीं बन सकती.'सी कंपनी' को छोड़कर अगर हम इस साल सबसे ज्यादा समीक्षकों के बीच वाह वाह बटोरने वाली फिल्म 'ए वेनसडे' की बात करें तो वो फिल्म भी एक आम आदमी की ताकत को रुपहले पर्दे पर उतारती है. लेकिन इस फि

कैसे निकलूं घर से...

रेलवे स्टेशन की तरफ, बस स्टैंड की तरफ, आफिस की तरफ घर से बाहर की तरफ बढ़ते हुए कदम रुक जाते हैं, और पलटकर देखता हूं घर को, अपने आशियाने को, जिसको खून पसीने की कमाई से बनाया है, जिसमें आकर मुझे सकून मिलता है, सोचता हूं, क्या फिर इस घर लौट पाउंगा कहीं किसी बम्ब धमाके में उड़ तो न जाउंगा या फिर किसी भीड़ में कुचला तो न जाउंगा, रुकते हैं जब कदम दौड़ने लगता है तब जेहन, असमंजस में पड़ जाता है मन, बेशक जान हथेली पर रखने का है जज्बा, लेकिन बे-मतलबी और अनचाही मौत से डरता है मन भीड़ को देखकर भी मन घबराता है कुचले जाने का डर सताता है कैसे निकलूं बेफ्रिक बेखौफ घर से लबालब हूं आतंक मौत के डर से