अंत तक नहीं छोड़ा दर्द ने दामन

कोई दर्द कहां तक सहन कर सकता है, इसकी सबसे बड़ी उदाहरण है पिछले दिनों मौत की नींद सोई बेनज़ीर भुट्टो..जो नौ वर्षों के बाद पाकिस्तान लौटी थी..सिर पर कफन बांधकर..उसको पता था कि उसकी मौत उसको बुला रही थी, मगर फिर भी क्यों उसने अपने कदमों को रोका नहीं. इसके पिछे क्या रहा होगा शोहरत का नशा या फिर झुकेंगे नहीं मर जाएंगे के कथन पर खरा उतरने की कोशिश.. कुछ भी हो, असल बात तो ये है कि दर्द ने बेनजीर भुट्टो का दामन ही नहीं छोड़ा.

स्व. इंदिरा गांधी की शख्सियत से प्रभावित और अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो से राजनीतिक हुनर सीखकर राजनीतिक क्षेत्र में उतरी बेनज़ीर भुट्टो बुर्के से चेहरे को बाहर निकालकर देश की सत्ता संभालने वाली पहली महिला थी. बेनज़ीर भुट्टो स्व. इंदिरा गांधी से पहली बार तब मिली थी, जब बांग्लादेश युद्ध के बाद 1972 में जुल्फिकार अली भुट्टो शिमला समझौते के लिए भारत आए थे, इस दौरन भुट्टो भी उनके साथ थी।

बेनज़ीर की हँसती खेलती जिन्दगी में दर्द का सफर तब शुरू हुआ, जब 1975 में बेनजीर के पिता को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था और उनके विरुध एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या मुकदमा चलाया गया तथा उन्हें चार अप्रैल 1979 को फाँसी की सजा दे दी गई।

इसके अगले ही साल 1980 में बेनजीर के भाई शाहनवाज की फ्रांस में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इतना ही नहीं इसके बाद 1996 में उनके दूसरे भाई मीर मुर्तजा की भी हत्या कर दी गई. इसके अलावा भुट्टो के पति जरदारी को भी काफी समय तक जेल में बंद रखा गया.

बेनजीर की माता भी इतने सदमे देखने के बाद अपनी होश खो बैठी लेकिन बेनज़ीर भुट्टो का दिल ऐसे कौन से शब्दों की देन था कि वो हर मंजर देखने के बाद भी पीछे हटने का नाम नहीं ले रही थी.

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